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दिल्ली चुनाव से सीख

अंकित सिंह " खड्गधारी" दिल्ली चुनाव से सीख वो कहते है न कि भूखे पेट भजन नहीं होते , पहले पेट पूजा फिर काम दूजा ,ये सब कहवाते आज कि नहीं बल्कि भारत वर्ष में ये सदियों पुरानी है और हम पारम्परिक रूप से इन कहावतों का पालन भी करते आये है ये बात हम सभी बहुत अच्छे से समझते है लेकिन कभी कभी महाज्ञानियों से भी चूक हो ही जाती है और वैसी ही कुछ चूक हो चुकी है मौजूदा  समय में देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा  से जी हाँ , जैसा कि सब ने देखा ,राष्ट्र के मुद्दे राज्यस्तरीय चुनावों में ज्यादा मायने नहीं रखते है देश अच्छे से जानता है कब किसे और कैसे सत्ता की जिम्मेदारी सौपनी है लोकसभा चुनावों में जिस तरह की प्रचंड जीत भारतीय जनता पार्टी के चमकते हुए नेता श्री नरेंद्र मोदी जी को मिली वह शायद  किसी अन्य नेता को मिल भी नहीं सकती थी क्यूंकि वो मोदी जी ही थे जिन्होंने ने पूरे देश की नब्ज को पहचाना और अपनी राष्ट्रीय योजनाओ व मुद्दों से जनता को उसकी नब्ज  के हिसाब से इलाज़ दिया व वादे भी किये जनता ने भी पूरे विश्वास के साथ मोदी जी का साथ दिया  और उन्हें सिर्फ एक बार नहीं बल्कि दुबारा फिर से उन्हें

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पीछे रह गयी विकास की राजनीति

पीछे रह गयी विकास की राजनीति ------------------------------------------------- एस. सी एस .टी एक्ट के संसोधन बिल ने सिर्फ संसद के अंदर ही नहीं अपितु पूरे देश में जातिवादी राजनीति को हवा दी है जी है यदि कोई ऐसा कहता है तो इसे बिलकुल भी नकारा नहीं जा सकता है और यदि कोई ऐसा कहता भी है तो उसे कहने का अधिकार भी है अगर एक साधारण   जनमानस एक स्वतंत्र   लोकतंत्र में अपनी बात नहीं रखेगा तो कहाँ रखेगा , न्याय व्यवस्था   में सुधार की दृस्टि से कोर्ट का फैसला एकदम वाजिफ था कि बिना जांच किसी को जेल न भेजा जाए और यदि दोषी पाए जाए तो दंड सहिंता के अनुसार दंड भी दिया जाए कोर्ट का फैसला बिल्कल न्याय संगत है और होगा भी क्यों नहीं क्यों इसमें किसी भी प्रकार की राजनीति शामिल नहीं है और न हि किसी प्रकार की राजनितिक मंशा के चलता ऐसा फैसला दिया गया किन्तु वर्तमान सरकार (भाजपा )ने जैसा रुख कोर्ट के इस फैसले को लेकर दिखाया उसे सवर्णो में बेहद निराशा और गुस्सा है और हो भी क्यों भाजपा में ज्यादातर सवर्ण कार्यरत है और बहुत से विधायक और सांसद भी आपको सवर्णो में ही मिल जायेंगे लेकिन संगठन की जातिगत राजनीति के

सेकुलर मोर्चा और समाजवादी

लगातार हो रही अनदेखी से छुब्द शिवपाल ने आखिरकार अपनी खुद और पारिवारिक पार्टी के से अलग हटकर सेकुलर मोर्चा का गठन कर डाला , ऐसा नहीं कि इस पार्टी का गठन अचानक से हुआ है एक लम्बे समय से चल रहे प्रयासों के नतीजा नज़र आता है सेकुलर मोर्चा , हालाँकि अभी तुरंत ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि सेकुलर मोर्चा उत्तर प्रदेश की राजनीति में कैसा प्रभाव डालेगा और सपा पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा वैसे अगर जानकारों की माने तो ये तो तय बात है कि सपा में अनदेखा किये जाने वाले नेताओं संख्या पिछले कुछ समय में बहुत तेजी से बढ़ी है और इस संख्या के लिए शिवपाल ने अपने दरवाजे खोल दिए है जिस से अनुभव और नामी गिरामी नाम सेकुलर मोर्चा में आने के पूरे आसार है जिस से भले ही सपा संगठन को कोई फरक न पड़े लेकिन ये तो तय है कि यदि ऐसा होता है तो सपा की चुनावी मुश्किलें जरूर बढ़ेंगी और अभी हाल में जब शिवपाल मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनकी पार्टी में उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रीय दलों को भी जोड़ा जाएगा। इस सिलसिले में यूपी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से उनक